Sampuran Balrachanayen (Hardbound) (Hindi)
Suryakant Tripathi Nirala
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निराला जी ने सन 1942 के बाद गद्य लिखना बंद कर दिया था ! ऐसे में उनका बाल-साहित्य भी पहले का ही है ! वह समय साम्राज्यवाद की औपनिवेशिक सत्ता के विरुद्ध इस महादेव के विशाल स्वाधीनता आन्दोलन का भी था ! ऐसे समय में अतीत के गौरव की, महापुरुषों के जीवन की गाथाएँ प्रकाश में लाई जा रही थीं क्योंकि औपनिवेशिक सत्ता बार-बार भारत को यही अहसास दिला रही थी कि यहाँ गर्व करने योग्य कुछ भी नहीं है ! निराला अपने साहित्य में पौराणिक रूपकों को नया अर्थ दे रहे थे, प्रतीक रूप में देवी का इस्तेमाल कर रहे थे, साथ ही, पुरानी आस्थाओं और विश्वासों पर प्रहार भी कर रहे थे क्योंकि वह जनसाधारण को रूढ़ियों से मुक्त करना चाहते थे ! उस दौर के लगभग सभी रचनाकारों के द्वारा बच्चों के लिए महत्त्पूर्ण लेखन इसलिए भी संभव हुआ क्योंकि इस रचनाकारों ने देश के भविष्य के प्रति अपनी जिम्मेदारी का गहरा अहसास किया था ! निराला 'भक्त ध्रुव', 'भक्त प्रह्लाद' और 'भीष्म' के पौराणिक आख्यानों का पुनर्सृजन इसीलिए करते हैं क्योंकि इन चरित्रों से सत्य और दृढप्रतिज्ञ रहने की प्रेरणा मिलती है ! निराला महसूस कर रहे थे कि अतीत के गौरवशाली बच्चों की जीवनी इस समय के बच्चों के लिए बेहद उपयोगी होगी क्योंकि इनसे वे सहज ही अन्याय और अत्याचारों के प्रतिरोध की प्रेरणा ग्रहण कर सकेंगे ! इस ग्रन्थ में पौराणिक कथाओं के अलावा, पाठक बच्चों के लिए लिखी उनकी किताब 'सीख भरी कहानियां' की उन कहानियों को भी पढ़ पाएँगे, जिनके बारे में निराला का यह मानना था की, "मैं कितना बड़ा साहित्यकार क्यों न माना जाऊं पर मेरी लेखनी तभी सार्थक होगी जब इस देश में बाल-गोपाल मेरी कोई कृति पढ़कर आनंद-विभोर होंगे ! इन कथाओं को सुनने का केवल ढंग मेरा है, बाकी सब कुछ हमारे पूर्वजों का है ! नन्हे-मुन्ने इन कहानियों में जितना अधिक रस पाएँगे, उतनी ही मेरी कहानिगोई की सफलता होगी !"