दुनिया ने दूसरा ध्यानचंद नहीं देखा। हॉकी के जादूगर की पदवी उन्हें अनायास नहीं मिली। केवल ध्यानचंद ने ही मैदान पर अपनी जादूगरी से सभी को चमत्कृत और झंकृत नहीं किया, बल्कि रूप सिंह, किशन लाल, के.डी. सिंह ‘बाबू’, बलबीर सिंह, लेस्ली क्लाडियस, ऊधम सिंह, मो. शाहिद, परगट सिंह एवं धनराज पिल्लै सरीखे खिलाडि़यों की मौजूदगी से भारतीय हॉकी ने सफलता के नए आयाम स्थापित किए।
यह पुस्तक हॉकी के उन महान् खिलाडि़यों को याद करने की कोशिश भर नहीं है, बल्कि भावी पीढ़ी को उनके शानदार और जानदार प्रदर्शन से परिचित कराने की दृष्टि से लिखी गई है। यदि हॉकी में हमारी बादशाहत का सिलसिला लंबा चला तो उसके पीछे खिलाडि़यों का अद्भुत प्रदर्शन ही मूलमंत्र था।
आज की पीढ़ी भी इन योग्य खिलाडि़यों से सबक लेकर नया इतिहास लिख सकती है। उनमें प्रतिभा है, संभावना है और सबसे बड़ी बात, उन्हें अपने को साबित करने की चुनौती भी है।
भारतीय हॉकी के स्वर्णिम इतिहास के रचयिता खिलाडि़यों की संघर्ष-गाथा है यह पुस्तक, जो भावी खिलाडि़यों को प्रेरित करेगी और भारत इस खेल में पुनः विश्वपटल पर एक महाशक्ति बनकर उभरेगा।